Rani Sati Dadiji Rani Sati Dadi Temple

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History of Shri Rani Sati Dadiji

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परम आराध्य श्री दादी जी के प्रताप उनके वैभव व अपने भक्तों पर निःस्वार्थ कृपा बरसाने वाली “माँ नारायाणी” को कौन नही जानता | भारत में ही नही विदेशों में भी इनके भक्त और उपासक हैं|
पौराणिक इतिहास से ग्यात होता है की महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह में वीर अभिमन्यु वीर गति को प्राप्त हुए थे | उस समय उत्तरा जी को भगवान श्री कृष्णा जी ने वरदान दिया था की कलयुग में तू “नारायाणी” के नाम से श्री सती दादी के रूप में विख्यात होगी और जन जन का कल्याण करेगी, सारे दुनिया में तू पूजीत होगी | उसी वरदान के स्वरूप श्री सती दादी जी आज से लगभग 663 वर्ष पूर्वा मंगलवार मंगसिर वदि नवमीं सन्न 1352 को सती हुई थी |
जन्म – श्री दादी सती का जन्म संवत 1338 वि. कार्तिक शुक्ला नवमीं दिन मंगलवार रात १२ बजे के पश्चात डोकवा गाँव में हुआ था | इनके पिता का नाम सेठ श्री गुरसामल जी था |
बचपन - इनका नाम नारायाणी बाई रखा गया था | ये बचपन में धार्मिक व सतियो वाले खेल खेलती थी | बड़े होने पर सेठ जी ने उन्हे धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ शस्त्र शिक्षा व घुड़सवारी की शिक्षा भी दिलाई थी | बचपन से ही इनमे दैविक शक्तियाँ नज़र आती थी, जिससे गाँव के लोग आश्चर्य चकित थे |
विवाह – नारायाणी बाई का विवाह हिसार राज्य के सेठ श्री ज़ालीराम जी के पुत्र तनधन दास जी के साथ मंगसिर शुक्ला नवमीं सन्न 1352 मंगलवार को बहुत ही धूम धाम से हुआ था |
तनधन जी का इतिहास – इनका जन्म हिसार के सेठ ज़ालीराम जी के घर पर हुआ था | इनकी माता का नाम शारदा देवी था | छोटे भाई का नाम कमलाराम व बहिन का नाम स्याना था | ज़ालीराम जी हिसार में दीवान थे | वहाँ के नवाब के पुत्र और तनधन दास जी में मित्रता थी परंतु समय व संस्कार की बात है, तनधन दास जी की घोड़ी शहज़ादे को भा गयी | घोड़ी पाने की ज़िद से दोनो में दुश्मनी ठन गयी | घोड़ी छीनने के प्रयत्न में शहज़ादा मारा गया | इसी हादसे से घबरा कर दीवान जी रातो रात परिवार सहित हिसार से झुनझुनु की ओर चल दिए | हिसार सेना की ताक़त झुनझुनु सेना से टक्कर लेने की नही थी | दोनो शाहो में शत्रुता होने के कारण ये लोग झुनझुनु में बस गये |
मुकलावा – मुकलावे के लिए ब्राह्मण के द्वारा दीवान साहब के पास निमंत्रण भेजा गया | निमंत्रण स्वीकार होने पर तनधन दास जी राणा के साथ कुछ सैनिको सहित मुकलावे के लिए “महम” पहुँचे | मंगसिर कृष्णा नवमीं सन्न 1352 मंगलवार प्रातः शुभ बेला में नारायाणी बाई विदा हुई | परंतु होनि को कुछ और ही मंजूर था | इधर नवाब घात लगाकर बैठा था | मुकलावे की बात सुनकर सारी पहाड़ी को घेर लिया | “देवसर” की पहाड़ी के पास पहुँचते ही सैनिको ने हमला कर दिया | तनधन दास जी ने वीरता से डटकर हिसारी फ़ौजो का सामना किया | विधाता का लेख देखिए पीछे से एक सैनिक ने धोके से वार कर दिया, तनधन जी वीरगति को प्राप्त हुए |
नई नवेली दुल्हन ने डोली से जब यह सब देखा तो वह वीरांगना नारायाणी चंडी का रूप धारण कर सारे दुश्मनो का सफ़ाया कर दिया | झडचंद का भी एक ही वार में ख़ात्मा कर दिया | लाशो से ज़मीन को पाट दिया | सारी भूमि रक्त रंजीत हो गयी | बची हुई फौज भाग खड़ी हुई | इसे देख राणा जी की तंद्रा जगी, वे आकर माँ नाराराणी से प्रार्थना करने लगे, तब माता ने शांत होकर शस्त्रों का त्याग किया | फिर राणा जी को बुला कर उनसे कहा – मैं सती होउंगी तुम जल्दी से चिता तयार करने के लिए लकड़ी लाओ |चिता बनने में देर हुई और सूर्य छिपने लगा तो उन्होने सत् के बल से सूर्य को ढलने से रोक दिया | अपने पति का शव लेकर चिता पर बैठ गई | चुड़े से अग्नि प्रकट हुई और सती पति लोक चली गयी | चिता धू धू जलने लगी | देवताओं ने गगन से सुमन वृष्टि की |
वरदान –तत्पश्चात चिता में से देवी रूप में सती प्रकट हुई और मधुर वाणी में राणा जी से बोली, मेरी चिता की भस्म को घोड़ी पर रख कर ले जाना, जहाँ ये घोड़ी रुक जाएगी वही मेरा स्थान होगा | मैं उसी जगह से जन-जन का कल्याण करूँगी |ऐसा सुन कर राणा बहुत रुदन करने लगा |तब माँ ने उन्हे आशीर्वाद दिया की मेरे नाम से पहले तुम्हारा नाम आएगा “राणी सती” नाम इसी कारण से प्रसिद्ध हुआ | घोड़ी झुनझुनु गाँव में आकर रुक गयी | भस्म को भी वहीं पघराकर राणा ने घर में जाकर सारा वृतांत सुनाया | ये सब सुनकर माता पिता भाई बहिन सभी शोकाकुल हो गये | आज्ञानुसार भस्म की जगह पर एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराया | आज वही मंदिर एक बहुत बड़ा पुण्य स्थल है, जहाँ बैठी माँ “राणी सती दादी जी” अपने बच्चो पर अपनी असीम अनुकृपा बरसा रही है| अपनी दया दृष्टि से सभी को हर्षा रही है|

"जगदंबा जग तारिणी, राणी सती मेरी मात|
भूल चूक सब माफ़ कर, रखियो सिर पर हाथ||"

|| SHRI PITARESHWARJI ||

History of Shri Khatu Shyam Babaji

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Khatu Shyam Babaji     श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे महान पान्डव भीम के पुत्र घटोतकच्छ और नाग कन्या मौरवी के पुत्र है। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान यौद्धा थे। उन्होने युद्ध कला अपनी माँ से सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेध्य बाण प्राप्त किये और तीन बाणधारी का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनो लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।
महाभारत का युद्ध कौरवों और पाण्डवों के मध्य अपरिहार्य हो गया था, यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुये तो उनकी भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा जाग्रत हुयी। जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे तब माँ को हारे हुये पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने नीले घोडे, जिसका रंग नीला था, तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभुमि की और अग्रसर हुये।
सर्वव्यापी कृष्ण ने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिये उसे रोका और यह जानकर उनकी हंसी भी उडायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है। ऐसा सुनने पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को ध्वस्त करने के लिये पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापिस तरकस में ही आयेगा। यदि तीनो बाणों को प्रयोग में लिया गया तो तीनो लोकों में हाहाकार मच जायेगा। इस पर कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस पीपल के पेड के सभी पत्रों को छेद कर दिखलाओ, जिसके नीचे दोनो खडे थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तुणीर से एक बाण निकाला और इश्वर को स्मरण कर बाण पेड के पत्तो की और चलाया।
तीर ने क्षण भर में पेड के सभी पत्तों को भेद दिया और कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होनें अपने पैर के नीचे छुपा लिया था, बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिये वर्ना ये आपके पैर को चोट पहुंचा देगा। कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस और से सम्मिलित होगा तो बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन दोहराये कि वह युद्ध में जिस और से भाग लेगा जो कि निर्बल हो और हार की और अग्रसर हो। कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है और इस पर अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में ही होगा।

ब्राह्मण ने बालक से दान की अभिलाषा व्यक्त की, इस पर वीर बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया कि अगर वो उनकी अभिलाषा पूर्ण करने में समर्थ होगा तो अवश्य करेगा. कृष्ण ने उनसे शीश का दान मांगा। बालक बर्बरीक क्षण भर के लिये चकरा गया, परन्तु उसने अपने वचन की दृडता जतायी। बालक बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की और कृष्ण के बारे में सुन कर बालक ने उनके विराट रूप के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की, कृष्ण ने उन्हें अपना विराट रूप दिखाया। उन्होनें बर्बरीक को समझाया कि युद्ध आरम्भ होने से पहले युद्धभूमीं की पूजा के लिये एक वीर्यवीर क्षत्रिय के शीश के दान की आवश्यक्ता होती है, उन्होनें बर्बरीक को युद्ध में सबसे वीर की उपाधि से अलंकृत किया, अतैव उनका शीश दान में मांगा. बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक युद्ध देखना चाहता है, श्री कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होनें अपने शीश का दान दिया। उनका सिर युद्धभुमि के समीप ही एक पहाडी पर सुशोभित किया गया, जहां से बर्बरीक सम्पूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।
Khatu Shyam Babaji युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी खींचाव-तनाव हुआ कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर कृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है अतैव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है। सभी इस बात से सहमत हो गये। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि कृष्ण ही युद्ध मे विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी। उन्हें युद्धभुमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखायी दे रहा था जो कि शत्रु सेना को काट रहा था, महाकाली दुर्गा कृष्ण के आदेश पर शत्रु सेना के रक्त से भरे प्यालों का सेवन कर रही थीं।
कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलियुग में हारे हुये का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है।
उनका शीश खाटू में दफ़नाया गया। एक बार एक गाय उस स्थान पर आकर अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहा रही थी, बाद में खुदायी के बाद वह शीश प्रगट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिये एक ब्राह्मण को सुपुर्द कर दिय गया। एक बार खाटू के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिये और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिये प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर १७२० ई० में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. मंदिर इस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिष्ठापित किया गया था। मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बना है। खाटूश्याम परिवारों की एक बड़ी संख्या के परिवार देवता है।

Satidham Temple

Amravati district is famous for its rich history. The district is so named as it is known as the “land of immortals” and is believed to be present from the days of Lord Krishna. People visit this district in search of the ancient forts and temple remnants, which depict the rich culture of the region during the time of the erstwhile rulers. Many of these temples dated back to the Puranas time and their construction dates are still debated.

Satidham Temple is one of the divine temples of the district. Built on 10th July 1975 the temple complex is located at Rallies Plot, which is almost at the heart of Amravati central town. This beautiful temple was founded by Shri Shivchandraiji Jhunjhunwala and is a work of art. The walls are decorated with colourful paintings which depict the stories from Puranas, Ramayana and Mahabharata. The temple complex consists of three separate temple domes and resembles like the Raths of Jagannath Mandir.

The presiding deity of this temple is Rani Sati Dadiji, whose idol is made up of various precious metals with two big gleaming eyes. All the figurines of Gods and Goddesses are richly decorated with silk dresses and ornaments.

Hundreds of devotees visit the Satidham Temple every year. Shree Ranisati Basant Mahotsav is the main occasion celebrated with thousands of devotees visiting from various parts of India. Tourists can enjoy fairs held during that time and eat free “bhog” given by the temple administration. The temple also celebrates various other special occasions every year like the Bhadva Badi Mahotsav, Mahashivratri, Shri Krishna Janmashtmi, Fagan Mahotsav, Ram Navami Mahotsav, Kartik Ekadasi Mahotsav and Masir Badi Mahotsav. Janmashtami is when a special annual fair is observed around the temple complex with innumerable devotees attending.

How to Reach Satidham Temple

Satidham Temple is pretty accessible from all parts of the district. This temple is 0.4 km from Amravati Railway Station. Local taxis and auto rickshaws are available from any part of the town to this temple. If one is visiting during Shree Ranisati Basant Mahotsav, then it is advisable to make prior hotel booking to avoid the rush. Moreover during this time public transport can charge a bit premium.

Satidham Temple Photos

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Worship Timing (पुजा का समय)

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Morning Time Of Temple (सुबह दर्शन का समय) : 6:00Am - 12:00PM

Afternoon Time Of Temple (दोपहर दर्शन का समय) : 3:00PM - 9:30PM

Closed Between : 12:00PM - 3:00PM

Mangla Aarti (मंगला आरती) : 6:15 AM

Morning time of Aarti(सुबह की आरती का समय) : 7:00 AM

Shankarji Abhishek Daily (शंकरजी अभिषेक रोज़ का समय): 10:00AM

Shankarji Aarti (शंकरजी की आरती का समय) : 11:15 AM

Bhog Time (भोग का समय): 11:15AM

Afternoon Closing Time (दोपहर का बंद करने का समय) : 12:00PM

Reopens for visitors (दर्शन समय) : 3:00PM

Evening Aarti (शाम की आरती का समय): 7:00 PM

Shayan Aarti(शयान आरती का समय) : 8:45PM

Temple Closed At (मंदिर बंद करने का समय) : 9:30PM




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Devotional Places

1. Shri Rani Sati Dadiji Temple,Jhunjhunu, Rajasthan
Rani Sati Dadiji The Rani Sati temple is early 19th century and is situated at Jhunjhunu which is approximately 10 kms from the Piramal Haveli. Rani Sati was a bride of a young, local Agrawal man, who died in warfare. His young wife immolated herself on his funeral pyre to become a Sati. The site of her sacrifice is now marked with a memorial temple which was built in her memory by her father-in-law. Though Sati was banned by law in 1829 by the British and many 19th century social reformers spoke against it, an aura has remained around this cruel practice and a Sati was recorded as late as 2008.
Address: Chobari Mandi Colony, Jhunjhunu, Rajasthan 333001



2. Narayani Dham , Pune
Narayani Dham Pune
Address:
Narayani Dham
Narayani Nagar, Behind Katraj Milk Dairy,
Pune-Satara Road, Katraj,
Pune 411 046
Contact No.:
020-24365151


Dadiji
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Contact Us

Address:SatiDham Temple, Rallies Plot, Amravati

Contact:
    Sanjay Jhunjhunwala: 9326212126
    Jay Joshi: 9890388896

Website: www.satidhamamravati.co.in

Concept & Developed By:
    Ms. Archana R. Zunzunwala
    AR Technologies,
    Bansod Plaza,Camp, Amravati.
     (M): 9923359772

Festivals

  • महाशिवरात्रि और बसंत महोत्सव का ३ दिन का प्रोग्राम जनवरी/ फेबुवारी में
    (MahaShivratri & Basant Mahotsav a grand celebration of 3 days mostly in February).
  • फागुन महोत्सव (श्यामबाबा जन्मउत्सव) होली पर
    (Fagun Mahotsav (shyam Baba Janmotsav) celebration at the time of Holi Festival).
  • चेत्र नवरात्रि महोत्सव से राम नवमी उत्सव तक
    (From Chetra Navratri Mahostav to Ram Navmi Utsav).
  • सावन झुला महोत्सव
    (Sawan Jhula Mahotsav).
  • जन्माष्टमी महोत्सव
    (Janmastmi Mahostav).
  • भादी अमावस्या
    (Bhadi Amavas).
  • मंगसिर बदी नवमी (दादीजी का मेला)
    (Mangsirbadi Navami (DADIJI ka Mela)).
  • कार्तिक महोत्सव (श्यामबाबा ) प्रगट महोत्सव
    (Kartik Mahotsav (Shyam baba Pragat Mahotsav)).

|| Shri Rani Sati Dadiji Aarti ||


       

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|| Hanumanji Aarti ||


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|| Shri Rani Sati Dadiji Chalisa ||


|| श्री राणीसतीजी चालीसा ||

||दोहा ||
श्री गुरु पद पंकज नमन, दुषीत भाव सुधार ||
राणी सती सुबिमाल यस , बरनो मति अनुसार ||
काम क्रोध मद लोभ माँ , भरम रही संसार||
॥चौपाई॥
नमो नमो श्री सती भवानी | जग विख्यात सभी नममानी ||
नमो – नमो संकटकू हरणी | मन वाछित पूरण सब करणी ||
नमो नमो जय जय जगदंबा | भक्तन काज न होय बिलम्बा ||
नमो नमो जय जय जग तारिणी| सेवक जन के काज सुधारीणी ||
दिव्य रूप सिर चुंदर सोहे | जगमगात कुण्डल मन मोहे ||
माँग सिंदूर सुकाजर टिकी | जग मुक्ता नथ सुन्दर निकी ||
गल वैजंती माल बिराजे | सोलहूं साज बदन पे साजे ||
धन्य भाग गुरसामालजी को | महम डोकवा जन्म सती को ||
तनधन दास पतिवर पाये | आनंद मंगल होत सवाये ||
जालिराम पुत्र वधु होके | वंश पवित्र किया कुल दोके||
पति देव रण माय जुझारे |सती रूप हो शत्रु संधारे ||
पति सगले सद्गति पाई| सुरमन हर्ष सुमन बरसाई ||
धन्य धन्य उस राणाजी को | सुफल हुवा कर दरस सती को ||
विक्रम तेरा सौ बावनकू | मंगशीर बदी नवमी मंगलकु||
नगर झुंझुनू प्रगटी माता | जग विख्यात सुमंगल दाता ||
दूर देस के यात्री आवे |धुप दीप नैवेद्य चढावें ||
उछाड छाडते है आनंद से | पुजा तन मन धन श्री फल से ||
जात जडूला रात जगावे | बंसल गोती सभी मनावें ||
पूजन पाठ पठन द्विज करते | बेद ध्वनी मुख से उच्चारते||
ना ना भाती भाती पकवाना | बिप्रजनो को न्युत जिमाना ||
श्रद्धा भक्ति सहित हरसाते | सेवक मन बांछित फल पाते ||
जय जयकार करे नर नारी | श्री राणी सतीजी की बलिहारी ||
द्वार कोट नित नोबत बाजे | होत सिंगार साज अति साजे ||
रत्न सिंहासन झलके नीको | पल पल छिन छिन ध्यान सती को ||
भाद्रकृष्ण मावस दिन लीला | भरता मेला रंग रंगीला ||
भक्त सुजन की सकड भीड़ है | दरसन के हित नहीं छीड हे ||
अटल भुवन में ज्योति तिहारी | तेज पुंज जगमा उजीयारी ||
आदि शक्ति में मिली ज्योति हे | देस देस में भवन भोवती है ||
ना ना बिधीसो पुजा करते | निशि दिन ध्यान तिहारो धरते ||
कष्ट निवारिणी दुःख नासिनी | करुणामयी झुंझुनू वासिनी ||
प्रथम सती नारायणी नामां | द्वादस और हुई इसिधामा ||
तिहुँ लोक में किर्ती छाई | श्री राणी सती फिरि दुहाई ||
सुबह शाम आरती उतारे | नौबत घंटा ध्वनी टंकारे ||
राग छत्तीसो बाजा बाजे | तेरहूँ मंद सुन्दर अति साजे ||
त्राहि त्राहि मैं शरण आपकी | पुरो मन की आस दास की ||
मुझको एक भरोसो तेरो | आन सुधारो काज मेरो ||
पुजा जप तप नेम न (जानूं) | निर्मल महिमा नित्य बखानू ||
भक्तन की आपति हर लेनी | पुत्र पोत्र सम्पति वर देनी ||
पड़े चालीसा जो सत बारा | होय सिद्ध मन मांही बिचारा ||
हम सब लोग शरण ली थारी | क्षमा करो सबि चुक हमारी ||
|| दोहा ||
दुःख आपद बिपदा हरण , जग जीवन आधार ||
बिगरी बात सुधारिये , सब अपराध बिसारी ||

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|| Shri Khatu Shyam Babaji Chalisa ||


|| श्री श्याम चालीसा||

||दोहा ||
श्री गुरु चरण ध्यान धर, सुमीरु सचिदानंद ||
श्याम चालीसा भजत हूँ, रच चौपाई छंद ||
॥चौपाई॥
श्याम-श्याम भजि बारंबारा । सहजहि हो भवसागर पारा।
इन सम देव न दूजा कोई । दिन दयालु न दाता होई।।
भीम सुपुत्र अहिलवती जाया । कही भीम का पौत्र कहलाया।
यह सब कथा कही कल्पांतर । तनिक न मानो इसमें अंतर।।
बरबरीक विष्णु अवतारा । भक्तन हेतु मनुज तनु धारा।
बासुदेव देवकी प्यारे । यशुमति मैया नंद दुलारे।।
मधुसूदन गोपाल मुरारी । वृजकिशोर गोवर्धन धारी।
सियाराम श्री हरि गोबिंदा । दिनपाल श्री बाल मुकुंदा।।
दामोदर रण छोड़ बिहारी । नाथ द्वारिकाधीश खरारी।
नर हरि रूप प्रह्लाद पियारा | खम्भ फारि हिरणाकुश मारा ||
राधा बल्लभ रुक्मणि कंता । गोपी बल्लभ कंस हनंता।।
मनमोहन चित चोर कहाए । माखन चोरि-चोरि कर खाए।
मुरलीधर यदुपति घनश्यामा । कृष्ण पतित पावन अभिरामा।।
मायापति लक्ष्मीपति ईशा । पुरुषोत्तम केशव जगदीशा।
विश्वपति त्रिभुवन उजियारा । दीनबंधु भक्तन रखवारा।।
प्रभु का भेद न कोई पाया । शेष महेश थके मुनिराया।
नारद शारद ऋषि योगिंदरर । श्याम-श्याम सब रटत निरंतर।।
कवि विद को करी सके न गिनंता । नाम अपार अथाह अनंता।
हर सृष्टी हर युग में भाई । ले अवतार भक्त सुखदाई।।
ह्रदय माहि करि देखु विचारा । श्याम भजे तो हो निस्तारा।
कीर पढ़ावत गणिका तारी । भीलनी की भक्ति बलिहारी।।
सती अहिल्या गौतम नारी । भई श्राप वश शिला दुलारी।
श्याम चरण रज चितलाई । पहुंची पति लोक में जाई।।
अजामिल अरु सदन कसाई । नाम प्रताप परम गति पाई।
जाके श्याम नाम अधारा । सुख लहहि दुःख दूर हो सारा।।
श्याम सलोचन है अति सुंदर । मोर मुकुट सिर तन पीतांबर।
गल बैजंती माल सुहाई । छवि अनूप भक्तन मान भाई।।
श्याम-श्याम सुमिरहु दिन-राती । श्याम दुपहरि अरु परभाती।
श्याम सारथी जिस रथ के । रोड़े दूर होवे उस पथ के।।
श्याम भक्त न कही पर हारा । भीड पडी तब श्याम पुकारा।
रसना श्याम नाम रस पीले । जी ले श्याम नाम के हाले।।
संसारी सुख भोग मिलेगा । अंत श्याम सुख योग मिलेगा।
श्याम प्रभु हैं तन के काले । मन के गोरे भोले-भाले।।
श्याम संत भक्तन हितकारी । रोग-दोष अध नाशे भारी।
प्रेम सहित जब नाम पुकारा । भक्त लगत श्याम को प्यारा।।
खाटू में हैं मथुरावासी । पारब्रह्म पूर्ण अविनाशी।
सुधा तान भरि मुरली बजाई । चहु दिशी नाना जहां सुनि पाई।।
वृद्ध-बाल जेते नारी-नर । मुग्ध भये सुनि बंसी के स्वर।
दौड़-दौड़ पहुंचे सब जाई । खाटू में जहां श्याम कन्हाई।।
जिसने श्याम स्वरूप निहारा । भव भय से पाया छुटकारा।
||दोहा ||
श्याम सलोने संवारे, बर्बरीक तनुधार ।
इच्छा पूर्ण भक्त की | करो न लाओ बार ||

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|| Ganeshji Chalisa ||


||श्री गणेश चालीसा||

||दोहा ||
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल |
विघ्न करण मंगल करण, जय जय गिरिजा लाल ||
॥चौपाई॥
जय जय जय गणपति गण राजू | मंगल भरण करण शुभ काजू ||
जय गजबदन सदन सुखदाता | विश्व विनायक बुद्धि विधाता ||
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन | तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन||
रजित मणि मुक्तन उर माला| स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ||
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशुलं| मोदक भोग सुगंधित फ़ूलं ||
सुन्दर पिताम्बर तन साजित| चरण पादुका मुनि मन राजित ||
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता| गौरी ललन विश्व-विख्याता||
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे | मूषक वाहन सोहत द्वारे ||
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी| अति शुचि पावन मंगलकारी||
एक समय गिरिराज कुमारी| पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी||
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा| तब पहुंच्यो तुम धरि द्धिज रुपा||
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी| बहु विधि सेवा करी तुम्हारी||
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा| मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा||
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला| बिना गर्भ धारण, यहि काला||
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना| पूजित प्रथम, रुप भगवाना||
अस कहि अन्तर्धान रुप हवै| पलना पर बालक स्वरुप हवै||
बनि शिशु , रुदन जबहिं तुम ठाना| लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना||
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं| नभ ते सुरन सुमन वर्शावाहिं||
शम्भु , उमा , बहु दान लुटावहिं| सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं||
लखि अति आनन्द मंगल साजा| देखन भी आये शनि राजा||
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं| बालक, देखन चाहत नाहीं||
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो| उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो||
कहन लगे शनि, मन सकुचाई| का करि हौ, शिशु मोहि दिखाई||
नहिं विश्वास , उमा कर भयऊ| शनि सो बालक देखन कहयऊ||
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा| बालक शिर उड़ि गयो अकाशा||
गिरिजा गिरीं विकल हवै धरणी| सो दुख दशा गयो नंहि वरणी||
हाहाकार मच्यो कैलाशा| शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा||
तुरत गरुड़ चढ़ी विष्णु सिधाये| काटि चक्र सों गज शिर लाये||
बालक के धड़ ऊपर धारयो| प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो||
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे| प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे||
बुद्धि परिक्षा जब शिव कीन्हा| पृथ्वी पर प्रदक्षिणा लीन्हा||
चले षडानन भरमि भुलाई| रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई||
चरण मातु-पितु के घर लीन्हें| तिनके सात प्रदक्षिणा कीन्हें||
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे| नभ ते सुरन सुमन बह बरसे||
तुम्हारी महिमा बद्धि बड़ाई| शेष सहस मुख सके न गाई||
मैं मति हीन मलीन दुखारी| करहुँ कौन विधि विनय तुम्हारी||
भजत राम सुन्दर प्रभुदासा| लग, प्रयाग, ककरा दुर्वासा||
अब प्रभु दया दीन पर कीजै| अपनी शक्ती भक्ति कुछ दीजै||
||दोहा ||
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करें धर ध्यान||
नित नव मंगल गृह बसै, लगे जगत सन्मान||
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋशि पंचमी दिनेश||
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश||

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|| Radha krishnaji Chalisa ||


|| श्री कृष्ण चालीसा ||

||दोहा ||
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र अरविन्द मुख, पिताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
॥चौपाई॥
जय यदुनन्दन जय जगवन्दन। जय वसुदेव देवकी नन्दन॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥
जय नट-नागर नाग नथइया। कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥
बंशी मधुर अधर धरी टेरी। होवे पूर्ण विनय यह मेरी॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥
गोल कपोल चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥
रंजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट बेजयंती माला॥
कुण्डल श्रवण पीतपट आछे। कटि किंकणी काछन काछे॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहै। छवि लखि सुर नर मुनिमन मोहै॥
मस्तक तिलक अलक घुंघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥
करि पय पान, पूतनहिं तारयो। अका बका कागा सुर मारयो॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला। भये शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई। मसूर धार वारि वर्षाई॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो। गोवर्धन नखधारि बचायो॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो। कोटि कमल जब फूल मंगायो॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें। चरणचिन्ह दे निर्भय किन्हें॥
करि गोपिन संग रास विलासा। सबकी पूरण करी अभिलाषा॥
केतिक महा असुर संहारयो। कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥
मात-पिता की बन्दि छुड़ाई। उग्रसेन कहं राज दिलाई॥
महि से मृतक छहों सुत लायो। मातु देवकी शोक मिटायो॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी। लाए षट दस सहसकुमारी॥
दें भिन्हीं तृण चीर सहारा। जरासंध राक्षस कहं मारा॥
असुर बकासुर आदिक मारयो। भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो। तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे। दुर्योधन के मेवा त्यागे॥
लखि प्रेम की महिमा भारी। ऐसे श्याम दीन हितकारी॥
मारथ के पारथ रथ हांके। लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए । भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाए॥
मीरा थी ऐसी मतवाली। विष पी गई बजाकर ताली॥
राना भेजा सांप पिटारी। शालिग्राम बने बनवारी॥
निज माया तुम विधिहिं दिखायो। उर ते संशय सकल मिटायो॥
तब शत निन्दा करी तत्काला। जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई। दीनानाथ लाज अब जाई॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला। बढ़े चीर भए अरि मुँह काला॥
अस अनाथ के नाथ कन्हैया। डूबत भंवर बचावत नइया॥
सुन्दरदास आस उर धारी। दयादृष्टि कीजै बनवारी॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो। क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै। बोलो कृष्ण कन्हैया की जय॥
||दोहा ||
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि। अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥

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|| Shivji Chalisa ||


|| श्री शिव चालीसा||

||दोहा ||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥चौपाई॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
||दोहा ||
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

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|| Shri Ram Chalisa ||


||श्री राम चालीसा ||

॥चौपाई॥
श्री रघुबीर भक्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहीं होई॥
ध्यान धरें शिवजी मन मांही। ब्रह्मा, इन्द्र पार नहीं पाहीं॥
जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो संतन प्रतिपाला॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहुं पुर जाना॥
तव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गोसाईं। दीनन के हो सदा सहाई॥
ब्रह्मादिक तव पार न पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
चारिउ भेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी॥
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहिं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहीं होई॥
राम नाम है अपरम्पारा। चारिउ वेदन जाहि पुकारा॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥
फूल समान रहत सो भारा। पावत न कोउ तुम्हरो पारा॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहूं न रण में हारो॥
नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥
लषन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूं किन होई॥
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥
जो तुम्हरे नित पांव पलोटत। नवो निद्धि चरणन में लोटत॥
सिद्धि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥
जो तुम्हरे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥
जय जय प्रभु ज्योति स्वरुपा। नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा॥
सत्य सत्य सत्य व्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब सिधि दीन्हीं॥
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥
जो कुछ हो सो तुमहिं राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय जय दशरथ के दुलारे ॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरुपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन-मन धन॥
याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥
आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिव मेरा॥
और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्धता पावै॥
अन्त समय रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥
||दोहा ||
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय। हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय। जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय॥

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||Hanumanji Chalisa||


|| श्री हनुमान चालीसा ||

||दोहा ||
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरीनन्दन। तेज प्रताप महा जग वन्दन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा। विकट रुप धरि लंक जरावा॥
भीम रुप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं। अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिकपाल जहां ते। कवि कोबिद कहि सके कहां ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र योजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै। महावीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट ते हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फ़ल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाई। कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
जो शत बार पाठ कर सोई। छूटहिं बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा॥
||दोहा ||
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप। राम लखन सीता सहित ह्रदय बसहु सुर भूप॥

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GauRakshanSeva

गायोकी महिमा अपार है| प्राचीन काल में आज की अपेक्षा प्रायः सभी गौ - सेवापरायण थे और गाये बहुत अधिक थी , जिससे सम्पूर्ण देश में गौ – जाति, गव्य – पदार्थ, श्रेष्ट अन्न , सुख – शांति एवं सम्रुध्दिका बाहुल्य था |
वर्तमान काल में दुर्भाग्यवंश आधुनिक सभ्यता के लोभ गौ – भक्तिसे दूर हो रहे है | जिससे गौ- वंशकी भारी उपेक्षा होती जा रही है और गायों की संख्या कम होती जा रही है | परिणामतः देश में दुःख दारिद्र्य का विस्तार हो रहा है और लोगो में हिंसा , क्रोध , लोभ तथा विलासिता बढती जा रही है | यही कारण है की सर्वत्र अशान्ति भी व्याप्त होने लगी है|
गौ माता की रक्षा व सेवा के लिए गौ रक्षण भी सतिधाम मंदिर का एक हिस्सा है |

गाय हमारी माता है , फिर क्यों काटा जाता है |
कटती गाय करे पुकार , बंद करो यह अत्याचार |

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